छत्रपति शिवाजी जयंती: वीरता, न्याय और स्वराज्य का प्रतीक

महाराष्ट्र की धरती पर हर साल गूंजते वीरता के गीत और स्वराज्य के सपने, 19 फरवरी को एक खास रंग में रंग जाते हैं। ये वो दिन होता है, जब भारत गर्व से छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाता है। वीर योद्धा, कुशल शासक, न्यायप्रिय राजा और हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक, शिवाजी महाराज सिर्फ एक जन्मदिन से बढ़कर हैं, वो एक प्रेरणा, एक आदर्श का प्रतीक हैं।

जिस शिवनेरी दुर्ग ने उन्हें पाला, उसी में 1630 में उनके जन्म के साथ मानो वीरता का एक नया अध्याय लिखा गया। बचपन से ही चमकने लगे नेतृत्व और साहस के गुण। गुरिल्ला युद्ध की नई रणनीति अपनाकर मुगलों और आदिलशाही सल्तनत को धूल चटाने वाले शिवाजी, सिर्फ युद्धवीर नहीं थे। उनका हर कदम दूरदर्शिता से सना हुआ था। सिंधुदुर्ग, रायगढ़ जैसे दुर्गों का निर्माण, मावलों (पहाड़ी लड़ाकों) का एक कुशल दल, ये सब उनकी युद्धनीति की मजबूती के प्रमाण हैं।

पर शिवाजी की महानता सिर्फ तलवार चलाने में नहीं थी। हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेकर स्वराज्य की स्थापना करने वाले इस राजा ने न्यायपूर्ण शासन का ऐसा उदाहरण पेश किया, जो सदियों तक याद रखा जाएगा। रायगढ़ सिर्फ उनकी राजधानी ही नहीं बनी, बल्कि स्वराज्य का प्रतीक बन गई। किसानों का कल्याण, सभी धर्मों का सम्मान, प्रजा के प्रति प्रेम, ये सारे गुण उन्हें सिर्फ एक महान शासक ही नहीं, एक आदर्श राजा बनाते हैं।

आज भी, 21वीं सदी में उनके आदर्श प्रासंगिक हैं। साहस, न्यायप्रियता, स्वराज्य की भावना और धर्मनिष्ठा, ये ऐसे गुण हैं, जिनसे हर पीढ़ी कुछ न कुछ सीख सकती है। शिवाजी जयंती सिर्फ जन्मदिन नहीं, बल्कि उनके सपनों को साकार करने, उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेने का दिन है।

जश्न का रंग, इतिहास का स्पर्श

पूरे महाराष्ट्र में शिवाजी जयंती को धूमधाम से मनाया जाता है। स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तरों में अवकाश रहता है। उनकी मूर्तियों पर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है। शोभायात्राएं निकलती हैं, जिनमें ढोल-ताशा, लेजिम और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है। लोग रंग-बिरंगे कपड़ों में सजकर नाचते-गाते हैं और जयघोष करते हैं। नाटकों, व्याख्यानों और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन, इतिहास को फिर से जीवंत कर देता है।

छत्रपति शिवाजी महाराज सिर्फ इतिहास के पन्नों में एक नाम नहीं, वो साहस, न्याय और स्वराज्य की एक जीवंत कहानी हैं। उनकी जयंती सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि उनके सपनों को पूरा करने, उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेने का एक वचन है। जय हिंद, जय शिवाजी!